परिचय भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और राजवंशों का इतिहास अत्यंत व्यापक और प्रभावशाली रहा है। उन्हीं में से एक है कटोच वंश, जिसे भारत का सबसे पुराना जीवित राजवंश माना जाता है। यह वंश त्रिगर्त साम्राज्य का वंशज है, जिसका उल्लेख महाभारत जैसे प्राचीन ग्रंथों में भी मिलता है। हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा क्षेत्र से जुड़ा यह वंश अपने गौरवशाली इतिहास, शौर्य, कला प्रेम और सांस्कृतिक विरासत के लिए प्रसिद्ध है।
त्रिगर्त साम्राज्य से कटोच वंश तक
कटोच वंश की उत्पत्ति महाभारत काल के त्रिगर्त देश से मानी जाती है। त्रिगर्त उन पाचाल, कुरु और मगध जैसे प्राचीन राज्यों में शामिल था, जो उस समय भारत के राजनीतिक मानचित्र पर प्रमुख स्थान रखते थे। त्रिगर्त का उल्लेख महाभारत में कई युद्धों और घटनाओं के दौरान आता है, जहाँ इसके राजा कौरवों के सहयोगी रहे थे।कटोच वंश को त्रिगर्त के शासकों का प्रत्यक्ष वंशज माना जाता है। यही कारण है कि इसे भारत के सबसे पुराने राजवंशों में गिना जाता है।
कांगड़ा किला: शक्ति और सुरक्षा का प्रतीक
कटोच वंश की राजधानी कांगड़ा थी। यहाँ स्थित कांगड़ा किला को भारत का सबसे पुराना और सबसे मजबूत किला कहा जाता है। यह किला न केवल अपनी भौगोलिक स्थिति के कारण सुरक्षित था, बल्कि इसका निर्माण भी इतनी मजबूती से किया गया था कि हजारों वर्षों तक इसे कोई जीत नहीं सका। इस किले पर मुगलों, अफगानों, सिखों और अंग्रेजों ने भी आक्रमण किए, लेकिन लंबे समय तक यह कटोच शासकों के नियंत्रण में ही रहा। यह किला कटोचों की रणनीतिक समझ और स्थापत्य कला का प्रत्यक्ष उदाहरण है।
राजा संसार चंद: कटोच वंश का स्वर्णकाल
18वीं शताब्दी में राजा संसार चंद कटोच ने वंश को एक बार फिर से उन्नति के शिखर पर पहुँचाया। वे एक कुशल प्रशासक, योद्धा और कला प्रेमी थे। उनके शासनकाल में कांगड़ा चित्रकला का विशेष विकास हुआ, जो आज भी विश्वभर में प्रसिद्ध है।कटोच वंश के इतिहास में राजा संसार चंद (1765–1823) का शासनकाल एक स्वर्ण युग के रूप में जाना जाता है। उन्होंने 18वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में शासन संभाला और अपने कुशल नेतृत्व, सैन्य शक्ति और सांस्कृतिक संरक्षण के कारण कांगड़ा रियासत को नई ऊँचाइयों तक पहुँचाया।उन्होंने कांगड़ा किले को पुनर्स्थापित किया और उसे एक सशक्त सैन्य गढ़ बनाया। उनके शासनकाल में चित्रकला, विशेषकर कांगड़ा चित्र शैली, को अत्यंत प्रोत्साहन मिला। राजा संसार चंद ने पड़ोसी पहाड़ी राज्यों को भी अपने नियंत्रण में लाने का प्रयास किया, जिससे उनका प्रभाव क्षेत्र और अधिक विस्तृत हो गया। उन्होंने मुगलों और गुर्खाओं के साथ कई युद्ध लड़े और कांगड़ा की प्रतिष्ठा को पुनर्स्थापित किया।
सांस्कृतिक योगदान और विरासत
कटोच वंश का योगदान केवल राजनीति और युद्ध तक सीमित नहीं था। उन्होंने धर्म, कला, संगीत और स्थापत्य में भी गहरी रुचि दिखाई। कांगड़ा घाटी में बने कई मंदिर, चित्रकला की विविध शैलियाँ और स्थापत्य कला के अद्भुत नमूने आज भी उनकी विरासत के रूप में मौजूद हैं।कांगड़ा चित्रकला, जो राजा संसार चंद के संरक्षण में फली-फूली, आज भारतीय लघु चित्रकला की सबसे प्रमुख शैलियों में से एक मानी जाती है।
कांगड़ा का पतन और अंग्रेजों का आगमन
राजा संसार चंद की मृत्यु के बाद कटोच वंश की शक्ति धीरे-धीरे क्षीण होने लगी। इसी समय पंजाब में सिख साम्राज्य उभर रहा था। महाराजा रणजीत सिंह ने कांगड़ा किले पर अधिकार कर लिया, और कटोच शासकों को सीमित अधिकारों के साथ अधीनता स्वीकार करनी पड़ी।फिर 1846 में प्रथम सिख युद्ध में अंग्रेजों ने सिख साम्राज्य को पराजित किया। इसके परिणामस्वरूप कांगड़ा सहित पंजाब के अनेक क्षेत्रों पर ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी का अधिकार हो गया।जब अंग्रेजों ने कांगड़ा किले पर अधिकार किया, तो कटोच वंश के पास केवल जागीरदारी अधिकार रह गए। वे अब स्वतन्त्र शासक नहीं रहे, बल्कि ब्रिटिश शासन के अधीन औपचारिक राजपरिवार बनकर रह गए। इस तरह, एक गौरवशाली राजवंश की राजनीतिक सत्ता का अंत हो गया।
आधुनिक समय में कटोच वंश
ब्रिटिश शासन और फिर स्वतंत्र भारत में रियासतों के विलय के बाद भले ही कटोच वंश की राजनीतिक सत्ता समाप्त हो गई हो, लेकिन आज भी इस वंश के वंशज कांगड़ा और आसपास के क्षेत्रों में सम्मानजनक स्थान रखते हैं। ये वंशज सामाजिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक कार्यों में सक्रिय हैं और अपने पूर्वजों की विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं।9 जून 2024 को राजा ऐश्वर्य चंद (489वें उत्तराधिकारी) का राजतिलक हुआ, जिसने इस वंश की परंपरा को पुनर्जीवित किया। कटोच परिवार आज भी कांगड़ा की सांस्कृतिक विरासत और पर्यटन को बढ़ावा देने में सक्रिय है।
0 Comments